मातृ भाषा हिंदी
पुरस्कृत लेख
विषय-” हिंदी है भारतवर्ष की मातृभाषा ,
राष्ट्रभाषा बने ये है अभिलाषा।”
लेख
समूचे विश्व में भारतीय जनमानस की पहचान मातृभाषा हिंदी से है। भारतवर्ष में हिंदी भाषा सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में अग्रणी है ।देश में 121 भाषाएं बोली व समझी जाती हैं। हालांकि ,भारतीय संविधान में सिर्फ 22 भाषा को मान्यता प्राप्त है। हिंदी और अंग्रेजी केंद्र सरकार की अधिकारिक भाषा है। भारत में 19500 बोलियां मातृ भाषा के रूप में बोली जाती हैं ।एक देश के रूप में भारत विविध व बहुभाषी है। देश में 44% लोगों की मातृभाषा हिंदी है। बांग्ला दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। मातृभाषा हिंदी को देश में राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। यह भाषा विविध भाषी राज्यों में संपर्क का काम करती है। यह अत्यंत क्षोभ का विषय है, कि, स्वतंत्रता के 74 वर्ष व्यतीत होने के बाद भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हो सका है ।इसकी संभावना निकट भविष्य में काम ही नजर आती है। जबकि, अंग्रेजी भाषा और मेंडेरिनचाइनीज भाषा के बाद हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोली जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने मात्र 6 भाषाओं को अंतरराष्ट्रीय अधिकारिक भाषा घोषित किया है ।ये हैं अरेबिक ,चाइनीज, इंग्लिश ,फ्रेंच, रशियन और स्पेनिश।
हमारे देश में राज्यों का विभाजन भाषा के आधार पर किया गया। ये राज्य मातृभाषा हिंदी का सर्वाधिक विरोध करते हैं, लेकिन ,अंग्रेजी भाषा को सहर्ष स्वीकार करते हैं ।ये राज्य बहुभाषी शिक्षा के माध्यम को भी नकारते हैं ।इन राज्यों का विरोध हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने में बहुत भारी पड़ रहा है।
नई शिक्षा नीति 2020-
हमारी सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा की है ।नई शिक्षा नीति में 5 +3 + 3+4 फॉर्मेट की घोषणा की गई है, और 10 +2 फॉर्मेट को नकार दिया गया है। कक्षा 5 तक अनिवार्य रूप से मातृभाषा और स्थानीय भाषा में पढ़ाई होगी। इसके बाद की कक्षाओं में भी इसे प्राथमिकता पर रखा जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर नई शिक्षा नीति के 5 स्तंभों का उल्लेख किया है ।
एक्सेस( सब तक पहुंच)
इक्विटी( भागीदारी )
क्वालिटी (गुणवत्ता )
अफॉर्डेबिलिटी (किफायत)
और अकाउंटेबिलिटी (जवाबदेही )
भारत सरकार के इस महत्वपूर्ण निर्णय का असर निकट भविष्य में परिलक्षित होने लगेगा ।और इसके दूरगामी परिणाम भी सकारात्मक आएंगे ।
आंग्ल भाषा को अंतरराष्ट्रीय आधिकारिक भाषा की मान्यता मिलने के कारण माता पिता अपने बच्चों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा हेतु तैयार करने के लिए शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी चुनते हैं। यह हिंदी भाषा के लिए कठिन चुनौती है ।हमारे छात्र हिंदी को महत्वपूर्ण विषय नहीं मानते हैं ।अतः, हिंदी भाषा को घोर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है ।हिंदी भाषा शब्द-कोश तकनीकी भाषा में उपलब्ध न होने के कारण सर्वसाधारण को तकनीकी ज्ञान अंग्रेजी भाषा में प्राप्त करना पड़ता है। आज भी तकनीकी, चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान ,अंतरिक्ष ,कंप्यूटर की भाषा का माध्यम अंग्रेजी है। हिंदी भाषा का योगदान नगण्य है ।अतः हमें उपरोक्त विषयों में उपयुक्त अनुवाद प्रस्तुत कर हिंदी भाषा को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए। हिंदी भाषा एक वैज्ञानिक भाषा है। जिसका शब्दकोश एवं व्याकरण अत्यंत समृद्ध शाली है।
हिंदी भाषा की चुनौतियां एवं रोजगार की संभावना-
हिंदी भाषा में रोजगार की संभावना सीमित है । हिंदी के विद्वान केवल विद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षक के रूप में मिलते हैं ।स्नातक स्तर पर लिपिक वर्ग में रोजगार की संभावना है ।विभिन्न प्रादेशिक बोलियों को बोलने वाले अधिक हैं, किंतु, उनका व्याकरण ना के बराबर है ।अतः यह उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम नहीं है। ना ही आजीविका का साधन बन सकती है।
हिंदी मात्र संपर्क भाषा बन कर रह गई है ।उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण हिंदी का योगदान नगण्य हो गया है। यहां तक कि व्यापार आदि का माध्यम अंग्रेजी है। जिससे हिंदी की उपेक्षा होती है।
प्रशासनिक सेवाओं ,लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी का ज्ञान आवश्यक है।जो हिंदी भाषा -भाषी लोगों को हतोत्साहित करता है।
नई शिक्षा नीति से हिंदी मातृभाषा का ज्ञान प्राइमरी तक सारे देश में अनिवार्य हो सकेगा। उसके बाद भी हिंदी को प्राथमिकता दी जाएगी ।अतः हिंदी सर्वव्यापी होगी ,सबकी भागीदारी सुनिश्चित होगी ,उच्च गुणवत्ता इसकी प्राथमिकता होगी ,और जन जन की जवाबदेही हिंदी मातृभाषा के प्रति होगी ।तब हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार हो सकेगी।
हम देशवासियों की अभिलाषा शीघ्र पूर्ण हो ,इसके लिए निरंतर प्रयास जारी हैं ।
मैं “कुंडलिया “छंद के माध्यम से अपने भाव राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति समर्पित करता हूं।
हिंदी भाषा राष्ट्र की ,अधिकारिक ले मान ।
भारत की बिंदी करे, तकनीकी अवदान।
तकनीकी अवदान ,यही हम सब की आशा।
करें मातृ को नमन ,दूर हो त्वरित निराशा।
कहे प्रेम कविराय ,विदेशी को कर चिंदी।
स्वास्थ्य चिकित्सा कोर्ट, प्रबंधन में हो हिंदी।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम