मातृ दिवस पर दोहे
माँ के दिल को पढ लिया,जिसने भी इंसान !
नही जरूरी बाँचना,…गीता और कुरान !!
गुस्से मे भी जब नही,मुझको कहा खराब !
माँकी ममता का तुम्हे,क्या दूँ और हिसाब !!
मेरे अपने आप ही,. बन जाते हैं काम !
माँ के आशीर्वाद का, देख लिय परिणाम !!
माँ से बढ़कर कब हुआ, कोई और मुकाम !
चाहे आवें साथ मे, मिल कर देव तमाम !!
वो चूल्हे की रोटियाँ,…वो अरहर की दाल!
जीवन मे इनका पडा,माँ के बिना अकाल! !
होता है इस भाँति कुछ,माँ का आशीर्वाद!
जैसे माली पेड को,.देता है जल खाद !!
पोंछा था जिनसे कभी,.बचपन मे मुंह गाल !
माँ की पेटी से मिले, ..सारे वही रुमाल !!
ख़त्म रसोई में हुआ , खाना जितनी बार !
माँ ने फांका कर लिया, झूठी मार डकार !!
इसे करिश्मा ही समझ ,कुदरत का इंसान !
माँ को बच्चा गंध से, . .लेता है पहचान !!
इसे करिश्मा ही समझ ,कुदरत का इंसान !
माँ को बच्चा गंध से, . ….लेता है पहचान !!
माँ के आँचल से बड़ा,.. नही दूसरा धाम !
मिलता है जाकर वहीं,बच्चों को आराम !!
रमेश शर्मा.
रमेश शर्मा.