मातृशक्ति का ये अपमान?
जनम लिया मां – बाप नहीं खुश,
नाना – नानी ननिहाल नहीं खुश,
विद्यालय गई समाज नहीं खुश,
बढ़ती गई नित नई बुलंदियों के साथ,
लक्ष्य भी चुना नव उल्लासों के साथ ,
कई झोंके सताने थे आए मुझे,
फिर भी मैं न डिगी वे गए लौट थे,
किया मेहनत था पूरे मनोयोग से,
लक्ष्य भी मिल गया मिली मंजिल भी थी
छाई खुशियां थीं मां- बाप के मुख पे भी,
मन में खुशियां लिए रत रही काम में,
दिल में सपने सजाए थी अरमानों के,
रात घनघोर थी ऐसी आंधी चली,
निद्रा आते ही दानव से मैं जा घिरी,
मरते दम तक मैं उससे लड़ी फिर लड़ी,
था कोई न निकट चीख चिल्ला रही,
आई अंतिम घड़ी छोड़ सब मैं चली,
“अब न लिखने की मुझमें सामर्थ्य ही रही,
दर्द दिल में बहुत कलम डगमगा रही ”
अनामिका तिवारी “अन्नपूर्णा” प्रयागराज