***मातृत्व दिवस पर * “* माँ का आँचल”*
।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।
***” मातृत्व दिवस पर “***
“माँ का आँचल ”
” माँ के चरणों में चंद्रमा जो मन के देवता हैं और पिता के चरणों में सूर्य, गुरु याने बृहस्पति जो धन व ज्ञान के देवता कहे जाते हैं ”
सृष्टि के प्रारंभ में माँ शब्द का अर्थ मातृ, जननी,मातेय ,अम्माँ आदि अनेक शब्दों में बोधक है माँ शब्द सुनकर ही मन में एक ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ती है जन्म के समय से ही माँ के स्नेहिल स्पर्श से ही अनुभव होने लगता है कि माँ कौन है ….. हरेक सांस की धड़कन में प्रेम की डोरी में बंध जाती है जो मर्मस्पर्शी होती है ईश्वर ने माँ को बनाकर हमें खूबसूरत तोहफ़ा दिया है स्वयं उस ममतारूपी ममत्व को पाने के लिए लालायित रहता है जो खुद को बालक के रूप में भेजकर पृथ्वी पर अवतरित किया है।
माँ का वात्सल्य रूपी प्रेम ,उदारता ,उस मूसलाधार बारिश की तरह से बरसता है मानो कोई अमृत की धार स्वाभाविक सहज रूप लिए हुए हो माँ की गोद में बच्चे देवतुल्य ,आनंद ,प्रेमभाव में सुरक्षित महसूस करते हैं माँ का वात्सल्य पूर्ण अनुशासन भी जरूरी है जो जीवन में बच्चों का भाग्य बनाता है माँ का प्रेम आकाश की तरह से अंनत धरती की तरह सहनशील भी है ईश्वर की बनाई अद्भुत अनुपम कृति रचना है।
माँ की ममता नींव का पहला पत्थर है जिसमें बच्चों की बुनियाद भविष्य पर टिकी हुई रहती है माँ केवल जन्मदात्री ही नही वरन ममतामयी ,करुणामयी,दयामयी ,शौर्यवान ,
क्षमाशीलता के गुण मौजूद रहते हैं माँ अपनी संतान के मन की बातें बिना कहे ही समझ जाती है अंर्तआत्मा से जान जाती है किसी भी इच्छा को पूर्ण करने के लिए अपनी खुशियों को दाँव पे लगाती है और हरेक ख्वाहिशों को पूरा कर देती है। माँ के आँचल में जो शांति है वो सारे जहां में कहीं भी नही है बच्चो के लालन पालन में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। माँ के प्रेम के आगे दुनिया की कोई भी कठिनाइयां टिक नही सकती है ।
संसार में माँ की महिमा का बखान जितना भी किया जाय कम ही है माँ के सिवाय दुनिया में कुछ भी नही है “माँ आखिर माँ ही है माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं है”बच्चे भले ही पढ़ लिखकर विदेश में रहते हो लेकिन माँ की आत्मा हर पल किसी न किसी रूप में उसके पास मौजूद रहती है कोई भी परेशानी हो कष्ट हो तो ओ माँ शब्द ही निकलता है।
वर्तमान परिवेश में सभी को खुश रखने की कोशिश में माँ का वो सुरक्षित पल,ममता भरी आँचल की छाँव में खुशियाँ तलाशते है जहां कभी किलकारियों की गूंज सुनाई देती थी और किसी संगीत की धुन पर माँ साज छेड़ते हुए लोरी गाते सुलाती थी आनंदमयी सुरमई तरंगों से घर आँगन महकता रहता था आज वही बच्चे बड़े होकर अपने जीवन में उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर है ।माँ की मातृत्व सुख को पहचानने के लिए पीढ़ियों में सुखद अनुभव भविष्य की कल्पना की उड़ान भरते हुए व्यक्तित्व को निखारते रहें …….माँ की ममता की छाँव में बच्चे खुद को सुरक्षित महसूस कर माँ का आदर सत्कार मान सम्मान बनाएं रखें जिससे खुद पर भी गौरान्वित महसूस कर सकते हैं।
*माँ सबका स्थान ले सकती है लेकिन …..माँ का स्थान कोई भी नहीं ले सकता है माँ के चरणों में जन्नत है ***
?? राधैय राधैय जय श्री कृष्णा ??
स्वरचित मौलिक रचना ??
***शशिकला व्यास ***
#* भोपाल मध्यप्रदेश #*