माता वैष्णो देवी की यात्रा
दो साल पहले मैं अपने माता पिता के साथ माता वैष्णो देवी की यात्रा पर गयी थी। वहां मेरे साथ एक संस्मरणीय घटना घटी। मुझे और मेरी बहन को अचानक ठण्ड लगने लगी। हम दोनों वहां के डिसप्लिनरी हाउस में जाकर सो गए। अचानक मुझे होश आया तो मैं पहाड़ी पे न जाने कहाँ आ गयी थी। मैं चारो तरफ नज़र दौराई मुझे डीसप्लिनरी हाउस कहीं नज़र नहीं आया। मैं अपने दिमाग पे ज़ोर डाली तो मुझे लगा जैसे मैं वहां किसी का पीछा करते हुए आयी। मुझे कुछ नहीं पता की रास्ता कैसा था या फिर मैं वहां आयी कैसे। जिसका पीछा करती हुई मैं वहां आयी वो काली पैंट पहना हुआ था। एक बात इस घटना के बारे में मुझे बहुत अजीब लग रही हैं जिस काली परछाई का मैं पीछा कर रही थी वो अचानक गायब हो गयी। मुझे डर लगने लगा। मैं रोने लगी। मैं माँ से दुआ करने लगी की काश ये मेरा सपना हो। मैं अपने आपको थप्पड़ भी मारी। तभी मुझे अहसास हुआ की ये सब हकीकत है। तभी मुझे एक पुलिस ने देख लिया। वो मुझे एक रूम में ले गया। डर के मारे मेरी पैंट गीली हो गई। कुछ पुलिस मुझे बिस्कुट के पैकेट ला के दिए ताकी मैं रोना बंद कर दूँ। और बिलकुल वैसा ही हुआ मैं रोना बंद कर दी। मेरे नाम की अनाउंसमेंट करवाई गई। मगर पापा मम्मी का कोई पता नहीं मिला। कुछ देर बाद पुलिस मुझे डिसप्लिनरी हाउस ले जाने की बात कर रहे थे। तभी अचानक पापा वहाँ आ गए। वो बहुत परेशान लग रहे थे। वो मुझे मारने के लिए हाथ उठाये तभी पुलिस ने उनका हाथ पकड़ा और बोले ‘बच्ची ऐसे ही डरी हुई हैं इसे और मत डराइए।’ मैं जब मम्मी और दीदी के पास पहुंची तो दोनों मुझसे लिपट गए। सब पूछने लगे की मैं कहाँ गई और कैसे गई? पर मैं क्या कहती मुझे खुद नहीं पता। मम्मी ने कहा ‘ बेटा तुम उतनी दूर उन जंगलों के पार कैसे गई और क्यों गई।’ मैंने सबको ये बात बताई तो किसी ने मुझ पर विशवास नहीं किया। आज तक मेरे अंदर उस रहस्य को जानने की उत्सुकता हैं की वो कौन था जो मुझे जंगल के पार उतना दूर ले गया ? इसी घटना के कारण ये यात्रा मेरी संस्मरणीय यात्रा है।