— माता पिता —
धरती पर दो रूप धरे
इन्हे भेज कर वो हो गया परे
दुःख सुख मिलकर बाँट रहे
वो मात पिता हैं जो हम सब के !!
इनके बिना नहीं दुनिआ हमारी
हर मांग अधूरी जो वो करते पूरी
कितना भी कष्ट उठा लेते हैं
जिस से संवरती है ये जिंदगी हमारी !!
जीवन जीना सिखाया इन्होने
चलना फिरना खाना पीना सब
हम सब को दिया है इन्होने
बिना इनके जीना होता है भारी
यही तो बनाते है तकदीर हमारी !!
फिर भी यह कलियुग में देखो
कितनों के मात पिता जैसे हैं भारी
अपने सुख सुविधा में विघ्न न आये
वृद्धाश्रम भेज आती है यह संताने
जैसे जीवन बोझ है उनका भारी !!
नहीं मिलते अब संयुक्त परिवार
जो मिलकर कष्ट उठा ले सारे
ज़माना इतना बदल गया है
हर मात पिता दिखते हैं दुखियारी !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ