माता का शुचि अंक
सागर सा हिय प्रेममय,माता का शुचि अंक।
आजीवन मिलता रहे, नहीं कभी मैं रंक।
नही कभी मैं रंक,छत्र-छाया जो माॅं की।
ममता की माॅं मूर्ति,लगे देवी की झाॅंकी।।
संस्कार शुचि सीख,सदा भरती मुझ गागर।
मुझको करता तृप्त,प्रेममय हिय जो सागर।।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**