✍️मातम और सोग है…!✍️
✍️मातम और सोग है…!✍️
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वो फूंक कर चिंगारी शहर में,
पूछता है किसने आग लगाई ?
सारे चूल्हों की बुझाकर आँच ,
पूछता है किसने भूख सुलगाई ?
कल उसके ही हाथ में चंद पत्थर थे
पूछता है,तावदानो में ये सुराग कैसा?
उसके सफ़ेद कमीज़ पर लाल छींटे थे,
पूछता है,ज़मीपर लहु का ये दाग कैसा?
ऊँचे मीनार गुबंद की असास ढ़हा दी
पूछता है,बची एक दिवार किसकी है?
हिंदू ना मुसलमान,मारा गया इंसान था
पूछता है,चौराहे पर मज़ार किसकी है?
कांधा देने भीड़ है उसकी दहलीज़ पर
पूछता है,ये किसका मातम और सोग है?
कोई अज़ाब नहीं उसे,किसी इल्जाम का,
कहता है,मेरी साफ़,सुफेद गिरेबाँ बेदाग है।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
10/06/2022