मातपित की खुशी तब दुगुनत होवत
कोई ठिकाना न रहो आनन्द को
तपस्या जब शक्ति की फलीभूत होवत
ले प्रस्ताव पहुंचत सप्त ऋषि हिमालय
मातपित की खुशी तब दुगुनत होवत
निश्चित भयत विवाह को तारीख
नारद देवन को निमंत्रण बाटत
सुर गण नंदी बनत बाराती
भूत पिशाचन बीच उमंग छावत
सवार हो वृषभ पर शिव चलत
दूल्हा बन बैठे तारन हार जो अब
जब सृष्टि नव निर्माण होवत
दिव्य बरात दिखत विचित्र बराती
डमरूओं की डम डम होवत
शंखों की गंभीर नाद शोभत
तब दशों दिशाए गूंज उठत
मनोहर नृत्य औ मंगल गीत गवत
द्वार हिमालय के पहुंचत है बरात
देख भूत पिशाच मैना डरवत
देखत जब पीछे महेश्वर को आवत
रूप शंकर का काम सो अनुपम
उमा शिव की दूरी कम होवत
शिव शक्ति की सृजन सृष्टि होवत