माटी के मूरत में भवानी दिखती नहीं ,
किस ओर देखूँ मैं, त्योहार है भवानी का
माटी के मूरत में भवानी मुझे दिखती नही,
देश के आंगन में फिर बेटी जो मसली गई
माँ अपना आँचल ओढ़ाती तो दिखती नही,
श्रृंगार बन कर रह गये माँ के नौ हथियार
महिषासुरों का अंत करते वो दीखती नही,
खुश है भवानी पथ्थरों में पूज्या बन कर
अत्याचारियों का दमन करते दीखती नही,
चंड़ -मुंड दिखने लगे हैं आज चहुँ ओर मुझे
संहार करते मगर भवानी कहीं दीखती नही,
किस ओर देखूँ मैं, त्योहार है भवानी का
माटी के मूरत में भवानी मुझे दिखती नहीं,
समाघात का है वक्त नजदीक आया
भवानी शंख फूंकते कहीं दिखती नही।
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[मुग्धा सिद्धार्थ ]