माटी के पुतले
जगत में जिनका हुआ आमद
उसको जग से निश्चित ही जाना
चाहे लाख यत्न करले कोई भी
लेकिन जाना तय है ही भव से
क्यों कर रहा लूट काट डकैती ?
भले कार्य करो ना हे प्रियतम
तू माटी के पुतले हो ही भुवन में
एक दिन माटी में ही मिल जाओगे।
कोई भी नर, नारी स्वजन को
सदा उत्तम बनाए रखना चाहता
अपने रूप रंगों को सतत बनाए
रखना चाहता इस जग, जहां में
अवस्था के साथ- साथ उनका
ये युवन रुप झड़ ही जाता यहां
तू माटी के पुतले हो इस जग में
एक दिन माटी में ही मिल जाओगे।
अगर तू हयात दौड़ में तबदील ही
कर ही बैठा तो अब क्या सोचना
अपने उत्तम कार्यों के द्वारा ही हम
अपने यश को पूर्ण विश्व में फैलाएं
खलक से जाने के पश्चात भी हमें
कर्म से ही याद किया जाएगा यहां
तू माटी के पुतले हो इस जहांन में
एक दिन माटी में ही मिल जाओगे।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार