माटी के पुतले हैं हम
माटी का खेल लोक में ,
माटी से आविर्भाव हैं हम ,
माटी में ही मिल जाएँगे ,
माटी के पुतले हैं हम।
समीर, सलिल, अवनि, वह्नि, व्योम ,
इन पञ्चन् अवयव से गढ़े हैं ,
मनुज का अन्वेषण और देहांत यही ,
माटी के पुतले हैं हम।
दुमर्द, दुष्ट, कुकर्मी मनुज ,
माटी के पुतले हैं हम ,
रुधिर ,धूर्त्तता, चौर्य, दल्भ कूल दो ,
खुशहाल से जी लो अपनी हयात ,
माटी के पुतले हैं हम।
अपनी हयात ना निरर्थक करो ,
गैरों को वेदना पहुँचाने में ,
जीवन स्तब्ध तो करते तुम ,
तुम अपनी प्रतिष्ठा खो बैठते ,
माटी के पुतले हैं हम ,
अपना गरुर विर्सजन कर दो।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या