*”माटी कहे कुम्हार से “*
“माटी कहे कुम्हार से “
मिट्टी रौंद कर जब घूमते चाक पे धरता।
मनचाहा आकार बनाने के लिए, हथेलियों उंगलियों से थपकी दे नव सृजन गढ़ता।
मिट्टी का रचिता विभिन्न रूपों में, सपनों को साकार करता।
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मिट्टी जब नये स्वरूप में आता ,
कल्पनाओं से मूर्ति बनाता।
मटका सुराही ,गुलदान ,दीपक कुल्हड़ है बनाता।
मिट्टी को हाथों से थामे हुए ,अंदर से संबल देते रहता।
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कुम्हार के हाथों में जादुई तरीका ,गजब का हुनर मिट्टी को सोना कर जाता।
मिट्टी से बनाये अनोखे बर्तन ,खेल खिलौने गढ़ता।
मूर्तियों में रंग भरकर सजीव चित्रण उकेरता।
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गुरु भी कुम्हार की तरह ,शिष्यों को दीक्षा देकर ,देवतुल्य जीवन सुघड है बनाता।
मिट्टी की सौंधी खुशबू से ,कुम्हार अनुपम कलाकृति बनाता।
मटका ,खिलोने मूर्ति दिये बाजारों में सजा कर बेचने जाता।
ग्राहक उस सुंदर मूर्ति खिलोने दीपक को लाकर कुम्हार का मूल्य चुका घर मे सँवारता सजाता।
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मिट्टी से अमूल्य वस्तुयें बना बाजार में ले जाता।
मटके से शीतल जल ठंडक पेय पिलाकर प्यास बुझाता।
फूलों का गुलदान सजे घर की साज सज्जा सुंदरता बनाता।
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कुम्हार के हाथों लगी मिट्टी भी आस लगाता।
घूमती हुई चाक पे चढ़ संभल कर सुंदर नव निर्माण कराता।
माटी को माटी में ही रहना मिट्टी में मिल जाता।
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हम सभी माटी के पुतले कठपुतली ,प्रभु जैसा चाहे वैसा ही नचाता।
मत कर तू अभिमान रे बंदे ,एक दूसरे के साथ सहारा देता।
मिट्टी का पुतला एक दिन मिट्टी में मिल जाता।
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“माटी कहे कुम्हार से,तू क्या रौंदे मोय”
“एक दिन ऐसा आयेगा ,मैं रौंदूंगी तोय”
अर्थात -*मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तू मुझे पैरों तले रौंद (,कुचल) रहा है।
एक दिन जब तुम्हारा विनाश हो जायेगा तुम भी इसी मिट्टी में मिल जावोगे
कबीरदास
कुम्हार मनचाहा आकार देता है उसी प्रकार एक दिन यह अवसर मिट्टी को भी मिलेगा। जब जीवन में मृत्यु के पश्चात ये शरीर नश्वर शरीर मिट्टी में ही मिल जायेगा।
उसे आकार निराकार करेगी उस दिन मिट्टी कुम्हार को रौंदूंगी इस संसार में प्रत्येक को ये अवसर मिलता है सब समय पर निर्भर है।
शशिकला व्यास✍️