माचिस की तीली था मैं
माचिस की तीली था मैं
खोल में पड़ा रहा जलने से पहले
आग अंदर था रगड़ने से पहले
फिर मुझे निकला गया
पहले सहलाया गया
देखा गया, जाँचा गया
फिर जाकर रगड़ा गया
इस तरहर मैं जलाया गया
कभी चूल्हा तो कभी घर
मुझ से फूंका गया
दूर बैठ कभी रोटी
तो कभी आँख को सेका गया
इस तरह हर बार
आग से आग लगाया गया…
…सिद्धार्थ