माई री [भाग२]
ओ माई मेरी ओ माई मेरी
करके तु मेरी विदाई,
मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया।
तुझको क्या मालूम है माई री
तेरे बीन मैं हो गई कितनी अकेली।
कोई नहीं है तेरे जैसी माई री
मेरी यहाँ पर पक्की सहेली।
तु थी तो खेल – खेल में ही
मेरा हर दर्द हर लेती थी।
मेरे हर प्रश्नों का उत्तर
झट से हल कर देती थी।
तेरी आँचल की छाया में
सकून बड़ा मिलता था।
जीवन का हर पल, हर क्षण।
हँसते- हँसते कट जाता था
तेर रहते कोई गम माई
मुझ तक नहीं आता था।
लगता है माई मेरी,
वह गम तुझसे डर जाता था।
आज मेरे मन में माई री
कितने प्रश्न उमड़ रहें हैं।
तुझसे उत्तर की तलाश में
यह नयन हमारे तुझे ढूंढ रहे है।
यह कैसी पहेली है माई री
जो मुझे समझ है नहीं आया।
तुही बता दे माई मेरी
इन प्रश्नों का उत्तर
इतनी कष्टों से जन्मीं तू
नाजों से मुझको पाला।
मेरे सपनों के संग तुमने
अपना सपना जोड़ डाला।
अपने खुन के कतरे से मुझे
पुरा कर इस दुनियाँ में लाया।
फिर क्यों कहती रही सदा
मुझको तुम पराया।
इन प्रशनों का उत्तर माई मेरी
क्या तुम्हें मिल पाया।
मिल जाए तो मुझे भी बता देना माई मेरी।
बेटी को लोग क्यों कहते है पराया।
~ अनामिका