” मां” बच्चों की भाग्य विधाता
मां शब्द नहीं ,मां अर्थ नही
मां भाव नहीं ,जो मैं व्यक्त करूं
मां की कोई भी परिभाषा को
कैसे मैं ,अपने मुख से अभिव्यक्त करूं
जिसने नौ महीने कष्ट सहे और
एक जीव को आकार दिया
अपना लहू पिलाकर के
एक जीवन का निर्माण किया
न जाने कितनी रातें
जग जग कर उसने बिताई हैं
मेरे रोने पर रोई थीं
मेरे हंसने पर मुस्कराई थीं
ऐसे ही नहीं मां की ममता
बच्चों के लिए दुआ बन जाती है
खुद गीले पर सोती है और
बच्चों को सूखे पर सुलाती है
मां की ममता की छांव में
हम खुद को महफूज समझते हैं
मां हांथ अगर सर पर रख दे
हम हर मुश्किल से लड़ सकते हैं
बच्चों की खुशी के खातिर मां
हर ग़म हंस के सह जाती है
अपने कष्ट छुपाकर के
बच्चे की खुशी में जीती है
मां की ममता की महिमा देखने
ईश्वर भी पृथ्वी पर आते हैं
कोशल्या जी के श्री राम चन्द्र
कृष्ण देवकी जी के सुत बन जाते हैं
मां मेरी पहली शिक्षक
मां ही मेरी निर्माता है
मां से ही हमें संस्कार मिलें
मां मेरी भाग्य विधाता हैं
मां के लिए मैं क्या शब्द लिखूं
मां मेरी जीवन दाता है
चार्मिग आर्या
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ