मां
आस है मेरी
ये माँ जो है
आस है मेरी
टूटती नहीं कभी
वक्त पर आती है
बिछौना,खिलौना,
पानी,खाना लेकर
अपने जख्मों को गुनगनाकर
मरहम लगाती है
मेरे सपनों की खातिर रात भर
लौरी सुनाती है
मिट्टी की मूरत के आगे माथा टेक
उसी के गीत गाती है
मेहनत कर मेरे बचपन की रखवाली में
वो पल भर सो जाती है
मुझे पसीने से सींच रही
भविष्य की रेखा खींच रही
जरूर परवरीश
खास है मेरी
ये माँ जो है
आस है मेरी
रूठती नहीं कभी
टूटती नहीं कभी
प्रवीण माटी