मां
मां, सिर्फ रिस्ता नहीं है ,
अहसास है ।
मां सिर्फ शब्द नहीं है,
विश्वास है।
मां का होना भरोशाा है,
मां का न रहना आघात भी,
मां, मांता ही नही,मां पिता भी हैं,
मां,बन्धु ही नहीं,बान्धव भी है।
मां,संगी ही नही,मां साथी भी,
मां देवी ही नही,देवता भी ।
मां,आकार भी है,
मां,निराकार भी।
मां प्रारम्भ भी है,
मां अन्त भी।
मां, सिर्फ मां नही है,
मां बहुत कुछ है।
हर रिस्ता मां से है
मां सब कुछ भी।
मां आदि भी है,मां अनन्त भी।
मां सिर्फ मां तक ही सीमित नही है,
मां,अखिल ब्रमाण्ड भी ।