मां
माँ
“प्रभु, मेरी पंजी के मुताबिक इस आत्मा ने अपने पूरे जीवनकाल में एक बार भी भगवान का नाम नहीं लिया है।” चित्रगुप्त ने यमराज को बताया।
“क्या, चित्रगुप्त की इस बात से तुम सहमत हो ?” यमराज ने उससे पूछा।
“हे देव, पिताजी की मृत्यु मेरे जन्म के सालभर बाद ही एक दुर्घटना में हो गई थी। जब मैंने आँखें खोली, तो सामने मुझे माँ ही दिखी। सोते-जागते, उठते-बैठते वही दिखने लगी। माँ के आगे मुझे कोई दूसरा भगवान दिखा ही नहीं। जब भी मैं माँ कहता, लगता कि भगवान का नाम ले रहा हूँ।” उसने कहा।
नम आँखों से चित्रगुप्त और यमराज उस दिव्यात्मा के सामने नतमस्तक थे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़