मां शारदा वागेश्वरी
मां शारदा वागेश्वरी
———————–
रूठे हुए शब्दों को मैं मनाऊं कैसे
दिल की गहराई से उनको निकालू कैसे।।1।।
लेके बैठा हूं सामने कलम और स्याही
शब्द ही न सूझे और लेखनी हैं धराशायी।।2।।
शरण जाऊं किसके, सोच में मैं पड़ा
मन तो था खाली और दुविधा बड़ा।।3।।
नाकाम कोशिशें कर रहा था
शब्द पकड़ में नहीं आ रहा था।।4।।
नाच रहे थे शब्द लिए रिंगन खेली
पकड़ नहीं आए खेले आंख मिचौली।।5।।
बैठा जाके मां शारदा के पास
कही डाल दें वो दो चार शब्दों की घास।।6।।
पकड़ के चरण उनके आसुओं में भिगोएं
तब जाके कहीं ये चार शब्द पिरोए।।7।।
कहूं क्या मैं? मां शारदा के लिए
शब्द ब्रह्म वहीं हैं, वहीं शब्द दिलाएं।।8।।
सोच रहा था मैं, मैं “मैं ” हूं अबतक
शब्दों के बिना “मैं” कुछ नही जबतक।।9।।
जय शारदे वागेश्वरी पुकारता हूं अब से
नमन स्वीकारों मां ओछा पड़ा मैं तब से।।10।।
शब्द पिरोये बिना तो काव्य अधूरा हैं
और काव्य बिना तो जीवन अंधेरा हैं।।11।।
मंदार गांगल “मानस”