” मां में नचनिया नहीं एक कलाकार हूं “
घुंघरू की एक झंकार में पूरी तरह सवर जाती हूं,
अपने आप के धुन में पूरी तरह डूब जाती हूं,
दुनिया वाले मुझे गंदी नज़रों से देखते हैं,
पर मां में नचनिया नहीं एक कलाकार बन जाती हूं।
मेरे हात और परो की थिरकन से जो आवाज़ निकलती है,
उसके जरिए इस दुनिया को कुछ समझना चाहती हूं,
तू तो मुझे समझती है,
मां में नचनिया नहीं एक कलाकार बन जाती हूं।
फूलो से जो दर्द के काटे खाए है,
उस दृश्य को इस नृत्य में प्रस्तुत करती हूं,
हर कोई मेरे खिल्फ खरा हो जाता है,
मां में नचनिया नहीं एक कलाकार बन जाती हूं।
यह दुनिया जो घुंगरू को एक बंदिश कहती हैं,
इस से तो मैं अपने हौसले को बरकरार रख पती हूं,
नहीं स्मजती की लोग किस रूप में किया कहते हैं,
पर मां में नचनिया नहीं एक कलाकार बन जाती हूं।
-Basanta Bhowmick