मां बाप के बिन ख़ुशी अधुरी
मेरा गाँव मेरे दिल मे आज भी कही बसता है पार्ट 3 कविता
कदम धरती पे रखता हूँ यह मनवा विस्तृत यूँ है
गांव देता श्रेष्ठता का अहसास मन समर्पित यूँ है
बादलों की ओट से चाँद को देखा करता कंभी
उसके गालों की वह लालिया आज रक्तिम यूँ है
गुजर गया है तूफान मन का शहर में रहने वाला
देखों जरा मेरा यहाँ ये वक्ष स्थल विकसित यूँ है
मां बाप के बिन खुशियां अधूरी ठहरी जीवन में
समझ गया ठोकर से ह्रदय मेरा यह तृषित यूँ है
कहता आज रोकर सोच क्या खोया पाया यहाँ
क्या मुर्गी के दड़बों में ये तेरा मन सुरभित यूँ है
भीड़ में रहकर भी तँन्हा लगता अपनी आँखों से
रे मन गाँव चल आय मेरा ये ह्दय विचलित यूँ है
समझाया खुद को तो समझ यह आया मुझकों
लौट चला गांव को तो मन उपवन सुज्जित यूँ है
अशोक सपड़ा हमदर्द