मां तुम्हें आता है ,
मां तुम्हें आता है ,
कपड़ों की तरह रफू करने ,उधड़े हुए पुराने रिश्ते ,
चूल्हे की राख की तरह समेट लेना ,
सारे शिकवे गिले और नखरे ,
चक्की की तरह ,अपने अरमानों को पीसना,
मां तुम्हें आता है ,
जीवन के सभी मसले हल करना ,
बेशक तुम अनपढ़ हो ,
लेकिन तुम्हारे हाथ की बनी रोटी की परिधि ,
आज भी नपी तुली होती है ।
मां तुम्हें आता है ,
क ख ग की तरह जिंदगी को समझना ,
लिखते समय मेरा हाथ पकड़ना ,
तुम आज भी छुपाकर रखती हो,
अपने कीमती गहनों की तरह, अपने आंसू , अपनी पीड़ा ,
मां तुम्हें आता है ,
सूरज को अपने पल्लू से ढकना , हर मुसीबत की धूप ,
तुम रोक लेती हो ,अपने आंचल से ,क्योंकि तुम मां हो ,
सृष्टि , विधाता सब तुमसे हैं ,
इसलिए मां तुम्हें सब आता है ।
मंजू सागर