मां जो है तो है जग सारा
जिसने जन्मा है यह काया,
जिसकी निर्मल कोमल छाया।
याद करूँ मैं तुमको माता,
तुम ही मेरी भाग्य विधाता।
जिसने है यह जग दिखलाया,
खुद ही रो कर हमें हँसाया।
फिर भी वो दुत्कारी जाती,
जिसकी गाथा दुनिया गाती।
बस एक दिन ही दिवस मनाते,
छोड़ उसे वृद्धशाला आते।
फिर भी गीत लाल के गाती,
चीर चुका जो उसकी छाती।
जिसकी ममता की छाया में,
पला बढ़ा जिसकी काया में।
आज वही क्यों ठोकर खाए,
मान यथोचित क्यों ना पाए।
माता की महिमा को मानो,
मन की निर्मलता पहचानो।
पाओगे ना फिर से माता,
टूट गया जो उससे नाता।
सोचो क्या जग कहेगा सारा,
कहा था जिसने राजदुलारा।
उसको ही अपमानित करते,
डूब कहीं क्यों ना तुम मरते।
आज अभी तुम कसम ये खाओ,
जाओ तुम वृद्धशाला जाओ।
तोड़ दो जग के सब वृद्धशाला,
लगा दो जग के मुँह पर ताला।
अब कोई माता ना रोए,
ना बर्तन ना कपड़ा धोए।
भोग रहे हो जिसकी थाती,
मत चीरो तुम उसकी छाती।
रोज जटा बस यही विचारे,
रहे मात निज पूत दुआरे।
माता से मत करो किनारा,
मां जो है तो है जग सारा।
जटाशंकर”जटा”
१०-०५-२०२०
मातृदिवस विशेष