मां चिड़िया
कोटि-कोटि आभार ईश्वर!!!
वाह!!! क्या सृष्टि रचाई।
मूक अमूक सभी जीवों में,
मां की ममता बसाई।
अहा…!!!
देख हृदय हुआ अत्यंत प्रफुल्लित
यह विहंगम सुंदर और मोहक दृश्य।
मां चिड़िया को देखकर है बनरहा,
नन्हा-सा सा चूज़ा शिष्य।
देखो छोड़ कर टहनी और घोंसला,
दो कोमल पत्तों पर आ बैठा।
है सुकुमार, रूई के फाहे सा
कोमल पत्तों ने उसे समेटा।
खोला मुख नन्हे पंछी ने, एक एक करके मां ने डाला दाना
और दानों की खोज में मां फिर से हुई रवाना।
आंगन,खेत और खलिहानों से कच्चे नरम वो दाने चुग थी
लेती भांप अगर कोई आहट, उन्मुक्त गगन में झटसे उड़ती।
नन्हे पंछी की भूख मिटाने मां लाई चोंच में दाने
सहलाकर पंखों से सोचती,ये भी कल लेगा नयी उड़ाने।
नन्हा पंछी जब चूं चूं करके खूब किलकारियां भरता।
मां चिड़िया के आते ही वह उससे जा लिपटता।
ममता और वात्सल्य से भर मां चिड़िया उसे दुलारती
चोंच से चोंच में दाने डालकर, बलैया उसकी उतारती।
फुदक फुदक नन्हा कलरव करता, घूमता डाली डाली।
सजल नयनों से मुस्काती मां देख चाल मतवाली।
नीलम शर्मा