*मां चंद्रघंटा*
“माँ”
चांदनी रातों में जब स्वप्न लोक की दुनिया में खो जाती हूँ।
अंबर में चमकते टिमटिमाते हुए सितारों को गिनती हूँ।
उन तारों के साथ चाँद को देखते हुए सोचती रहती हूँ।
माँ की ममतामयी मूरत ईश्चर ने ऐसी ही प्यारी बनाई है।
माँ को देखते उनके चरणों में ही जन्नत की सैर कर लेती हूँ।
सुबह सबेरे उठ माँ की मूरत में जब खो जाती हूँ।
झट से उनके बांहों में झूलकर माँ को गले लगाती हूँ।
वो स्नेहिल स्पर्श उनके हाथों से आशीष सदैव पा जाती हूँ।
फिर धीरे से माँ के आँचल में छिपकर उन यादों में खो जाती हूँ।
मीठी सी मुस्कान बिखेरे जब माँ मुझे पुकारती है।
जो स्वयं में खोई हुई न जाने फिर भी सभी का ख्याल रखती है।
सुखद एहसास दे मन को शीतल ममता की छाँव दे जाती है।
वो सिर पर हाथ फेरकर दुआओं का असर खोजती है।
सारे दुःख दर्द भुलाकर भूली बिसरी यादों में खो जाती हूँ।
काश …! वो वक्त फिर लौट आये जब नन्हीं सी परी देख माँ कितनी मुस्काई थी।
मेरे नैनो की अश्रु धारा की बूंदे गिर कर उन खुशियों के लिए मोहताज हुई हूँ।
शशिकला व्यास ✍️