मां के लाल
स्वाभिमान पर बात जो लाए , बात यहां पर बढ़ गई .
स्वर्ण पर जो घात लगाए , आंखों में वह गढ़ गई .
शब्दों से जो घात किया , यह बात तो दिल में चढ़ गई .
पीड़ा थी यह बस लालों की , सत्ता से कविता लड़ गई .
मामा जी फलों फूलों , मगर औकात न भूले .
नागों के भले नागराज , पर चंदन से ना झूलो .
यह मामा जी के अंत का एक जाल है .
परशुराम का परसा और राणा की ढाल है .
कृष्ण नहीं पर उनका ही तो लाल है .
मामा और उसकी सत्ता के काल हैं .
जिनके दम पर भारत जिंदा हम वही माई के लाल हैं