मांँ की लालटेन
बड़ी पुरानी मांँ की लालटेन,
उनकी याद दिलाती है,
अब भी टंँगी यथास्थान,
तब की बात बताती है,
नित्य शाम की थी दिनचर्या,
तेल डाल, बाती साफ कर,
उसी स्थान पर टँगना था,
बिजली गुल हो जाने पर,
आसानी से फिर मिलना था,
तब बिजली रहती थी कमतर,
एक लालटेन से घर था रोशन,
कई बच्चे पढ़ते थे साथ,
महिलाएंँ पकातीं भोजन,
बड़े-बुजुर्ग करते थे बात,
अब बिजली के लट्टू जलते,
बच्चे अलग कमरों में पढ़ते,
महिलाएँ टी०वी० में व्यस्त,
बूढ़े-बुजुर्ग मिलने को तरसते,
रिश्तों में यूंँ बढ़ती दूरी,
भौतिकता की स्याह दिखाती है,
बड़ी पुरानी मांँ की लालटेन,
तब की याद दिलाती है।
मौलिक व स्वरचित
श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)