मां की पाती
काश तुम्हें मैं समझा पाती
मां तो बस मां ही होती है ।
तेरे संग ही वो हंसती है
तेरे संग ही वो रोती है ।
कभी सखी बन, बन हमजोली
तेरे संग इठलाती भी है
किन्तु कभी लगती अति निष्ठुर
मन को बड़ा दुखाती भी है।
मेरी बिटिया वो जान चुकी
जग में स्त्री की मर्यादा ।
यदि उड़ती स्वच्छन्द गगन में
आती है क्या क्या बाधा ।
बाधाओं का चीर कलेजा
यदि फिर भी उड़ जाती है।
तो भी मानो बिटिया मेरी
वो चैन कभी न पाती है ।
है तुम्हें पता बिटिया मेरी
स्त्री भावों से भरी हुई ।
श्रद्धा विश्वास समेटे वो
अतुलित प्रेम में पगी हुई।
है कहां पता तुमको अब तक
कैसे ये भाव छले जाते ?
सीपी में मुक्तक दिखलाकर
सारे अहसास ठगे जाते ।