मां की दूध पीये हो तुम भी, तो लगा दो अपने औलादों को घाटी पर।
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
सूनी धरती पर सीमा के रखवालों को।
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
दुश्मन के तोप अंगारों को।
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
देश हिफाजत में जान-शहादत को।
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
शहीदों के विधवा राग अलापों को,
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
मासूमों के पुचकारों।
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
मां की उजड़ी बहारों को,
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
बूढ़े बाप के सहारे को।
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
बहन के अरमानों को।
ऐ खद्दर बालों तुम क्या जानों,
युवा जोश जवानों को।
ऐ खद्दर बाले जाने कैसे रोते हो तुम,
कि तेरी आंखे पथराती नहीं।
ऐ खद्दर बाले जाने कैसे सोते हो तुम,
कि तेरी सुख चैन जाती नही।
ऐ खद्दर बालों क्या है विवशता,
बस तुम इतना बतला दो।
मां की दूध पीये हो तुम भी,
तो लगा दो अपने औलादों को घाटी पर।
देश की रक्षा में शहीद पर मेरी 05-01-2016 की एक रचना