माॅं की कशमकश
यह माॅं की है दुआ
ऐ खुदा मुझको देना एक बिटिया
सारे शौक करूं मैं पूरे उसके,
पूरी करूं हर एक इच्छा,
चलो अच्छा हुआ ।
यह तीज का त्यौहार भी बीत गया..
वक्त बिता बीते लम्हें
गुजरे लम्हों के साथ
देखो क्या क्या हुआ ?
माॅं कहे !
अब हाथ में मेरे क्या रह गया ?
सब कुछ अब बिटिया
भैया- भावज का हुआ
मान सम्मान अब सब तेरा
उनकी मनमर्जी का हुआ।
चलो अच्छा हुआ यह त्योहार भी बीत गया..
तीज त्योहार पर कैसे शगुन पहुंचाऊ
कैसे बिटिया मैं तुझको अपने द्वार बुलाऊ
कमी तो नहीं है शान शौकत में हमारी
पर बिटिया मैं अब वक्त की हूं मारी
तू तो सब जानती है खुद को समझ लेना।
चलो अच्छा हुआ यह त्योहार भी बीत गया..
तुझको शगुन जब जाता नहीं
मन मेरा भी बिटिया लगता नहीं
कैसे मैं मन को समझाऊगी
पापा की दुलारी को बताऊंगी ससुराल में
ससुराल में ना किसी को कुछ बतलाना
भाई- भाभी का ना मान घटाना ।
चलो अच्छा हुआ यह त्यौहार भी बीत गया….