मां का दिल।
एक पुराना किस्सा है बचपन में किसी सस्ती सी पत्रिका में पढ़ा था। वही वाली पत्रिका जो दस दस पैसे में बस स्टेशनों पर मिला करती थी।
किस्सा यूँ था कि एक युवक को एक युवती से प्यार हो जाता है। बेपनाह प्यार हो जाता है। युवती भी युवक से खूब प्यार करती है। दोनों एक दूसरे से अक्सर मिलते और अपने भावी जीवन के हसीन चित्र बनाया करते। युवक के परिवार में सिर्फ उसकी मां और वह दो सदस्य ही रहते हैं। युवक को अपनी मां के पश्चात उस युवती से ही प्यार और स्नेह मिलता है। युवक दिनरात मुहब्बत के नशे में चूर रहता है। एक दिन बात ही बात में युवती उससे पूछती है।
युवती : तुम मुझसे कितना प्यार करते हो ?
युवक: तुम अंदाज़ा नहीं लगा सकती इतना , इस दुनियां में , धरती पर , आसमान में कहीं कुछ ऐसा नहीं कि तुम जिससे मेरे प्यार की तुलना कर सको।
युवती : इतना ज्यादा ! यकीन नहीं होता।
युवक: तुम बताओ मैं ऐसा कौन सा काम करूँ जो तुम्हे मेरी बात पर यकीन आ जाये।
युवती कुछ देर तक सोच में पड़ जाती है , फिर उसके चेहरे पर असमंजस के भाव आते हैं , कुछ देर तक वह दुविधा में रहती है।सम्भवतः जो उसे कहना है उसकी हिम्मत नहीं जुटा पा रही होती है।
युवक अधीर होकर : इतना क्या सोच रही हो , तुम सिर्फ कह कर देखो ।
युवती : रहने दो। मुझे यकीन है।
युवक: नहीं , जरूर कुछ तुम्हारे दिल में है , तुम मुझे बता नहीं रही। तुम्हे लगता है मैं नहीं कर पाऊंगा।
युवती : इतना ज़िद कर रहे हो तो सुनो , क्या तुम मेरे लिए अपनी मां का दिल निकाल कर ला सकते हो।
लड़के के मुंह से एक चीत्कार निकल पड़ती है : यह कैसी मांग है !
यह भी भला कोई बेटा कर सकता है।
युवती : तुमने ज़िद की तो मैने बताया है। अब दिल लेकर आना तब मुलाकात होगी।
युवक उसे रोकने और समझाने का प्रयास करता है पर युवती उसकी एक नहीं सुनती और चली जाती है।
युवक घर लौट आता है। उदास रहने लगता है। उसकी माँ बार बार लगातार उससे उसकी उदासी का कारण जानने का प्रयत्न करती है पर वह युवक माँ को कुछ नहीं बताता। पर युवती से न मिल पाने के कारण उसकी बेचैनी दिन ब दिन बढ़ती जाती है। वह बुरी तरह परेशान हो जता है। उसकी हालत पागलों जैसी होने लगती है।
एक रात जब उसकी मां गहरी नींद में सोई रहती है तब युवक का अपने ऊपर से नियंत्रण खो जाता है। वह समझ जाता है कि बिना उस युवती के वह जी नहीं सकता। वह एक छूरे से मां पर आक्रमण करता है और मां का दिल निकाल कर युवती के घर की तरफ चल पड़ता है। रात का समय होने के कारण रास्ते ठीक से दिखाई नहीं पड़ते। पर युवक अपने पागलपन में चलता ही जाता है कि अचानक उसका पांव एक पत्थर से टकराता है। दिल उसके हाथ से गिरते गिरते बचता है। उसके पांव में गहरी चोट लगती है , कई उंगलियों के नाखून ठोकर लगने के कारण उखड़ जाते हैं। वह थोड़ी देर के लिए रुक जाता है।
तभी एक चमत्कार होता है।
उसके मां के दिल से आवाज़ आती है: बेटा इतनी जल्दी क्या है , आराम से चल , देख तुझे कितनी जोर से चोट लग गयी है। मेरे दिल को बहुत पीड़ा हो रही है।
युवक मां के दिल को विस्फारित नेत्रों से देखता रह जाता है । उसे समझ आता है की प्यार के पागलपन में उसने कैसा घृणित काम कर दिया है। उसका मन ग्लानि से भर उठता है और वह अपनी मां के दिल को अपनी छाती में जोर से भीचकर चीत्कार करते हुए वहीं गिर पड़ता है।