मां का दर्द
मां का दर्द कोई भी इसे समझ न पाया।।।। कोई इसे समझ न पाया। कविता ने गाया।। दोहा ने भी गीत सुनाया।पर! सोरठा इसे समझ न पाया।। मां का दर्द! कोई इसे समझ न पाया।। कव्वाली ने भी शोर मचाया। चौपाई ने इसे दोहराया
पर! भजन इसे समझ न पाया।। मां का दर्द, कोई इसे समझ न पाया। कुछ श्रवण की समझ में आया।ले उठा काहर कन्धे पर चला।। पर मां का दर्द ,समझ न पाया। कुछ परशुराम की समझ में आया। कोई इसे समझ न पाया।। धरती बन कर जब तेरे सामने आई। अपनी छाती पर तुझे बैठाया। मां का दर्द समझ न पाया। फिर बन कर गाय माता नू दूध तुझे पिलाया।बन कर, जननी मां ने गोद तुझे बैठाया।पर! फिर भी दर्द समझ न आया।।बन मनुष्य तुने और भी दर्द गहराया।। मां का दर्द, कोई इसे समझ न पाया।।