मां आई
मां आई
बैठी सामने
मैंने दुख को नहीं मां को देखा
पिता आए गले लगाए
मैने सुख को नहीं पिता को देखा
क्षण भर में
पिता ने आगोश से अलग कर दिया
जाना कि सुख क्षणिक है
स्थाई दुख की दवा खोजती
मां अब भी वहीं बैठी है
और मैं दुख को दुख की तरह
प्रेम करने की यात्रा पर हूं….