*मांसाहार-शाकाहार : 12 दोहे*
मांसाहार-शाकाहार : 12 दोहे
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(1)
हिंसा किसके मूल में ,आओ करें विचार
पशु के प्रति है क्रूरता ,भोजन मांसाहार
(2)
पक्षी – पशु मारा गया ,कारण केवल स्वाद
उसकी चीखों को करो ,थाली में कुछ याद
(3)
पशुता मानव में बसी ,सौ-सौ गुणा अपार
सोचो मानव ने किया ,जब-जब मांसाहार
(4)
खाते मुर्गा प्लेट में , चूसी उसकी टाँग
छोड़ो यह पशु-क्रूरता ,यही समय की माँग
(5)
जीने दो-खुद भी जिओ ,यही अहिंसा-धर्म
समझो पशु की वेदना ,मांसाहार कुकर्म
(6)
गाय-भैंस-बकरी सभी ,होते प्रभु का रूप
इनमें भी आत्मा बसी ,इस नाते यह भूप
(7)
चीख – चीख कर कह रहे ,पशु देते आवाज
हमें मार कर खा रहे , आती तनिक न लाज
(8)
सर्कस पर करते दया , खाते मांसाहार
हिंसक जीवन जी रहे ,दो-मुँह मिथ्याचार
(9)
दूध दही फल सब्जियाँ ,देतीं शक्ति अपार
प्रेम सहित खाओ सभी , सुंदर शाकाहार
(10
आओ जग ऐसा रचें ,खाएँ भोजन-शाक
पाककला हे प्रभु बने ,शुद्ध अहिंसक पाक
(11)
दूध दही घी खाइए , रोटी चावल दाल
चटनी धनिए की मिली ,जिसको वह खुशहाल
(12)
वर्षा से खेती हुई , इससे गेहूँ – धान
धन्य-धन्य गो मानिए ,दही दूध की खान
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पाक = पवित्र
पाककला = भोजन बनाने की कला
भूप = राजा
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451