मांग रहा हूँ जिनसे उत्तर…
गीत…
मांग रहा हूँ जिनसे उत्तर, वो बिल्कुल ही मौन खड़े हैं।
जाने कितने प्रश्न हमारे, यूँ ही उनके पास पड़े हैं।।
कहते थे अक्सर मिलने पर, भूल नहीं हमको सब जाना।
आज वही मिलते हैं ऐसे, कहना पड़ता है पहचाना।।
चलते हैं राहों पर रुक- रुक, दिखलाते पहचान बड़े हैं।
मांग रहा हूँ जिनसे उत्तर, वो बिल्कुल ही मौन खड़े हैं।।
खुशहाली के कितने वादे, दीवारों पर हँसते मिलते।
ज्ञात नहीं जब हो माली को, जर्जर फूल कहाँ हैं खिलते।।
दब जाते उपवन में हैं वह, जिसके पत्ते साख सड़े हैं।
मांग रहा हूँ जिनसे उत्तर, वो बिल्कुल ही मौन खड़े हैं।।
तारीखें ही मिलती क्यों हैं, सच्चाई की उम्मीदों को।
खानी पड़ती है नित ठोकर, जाने कितनी उन्नीदों को।।
न्याय बुला लेते महलों में, जिनके होते हाथ कड़े हैं।
मांग रहा हूँ जिनसे उत्तर, वो बिल्कुल ही मौन खड़े हैं।।
बदलेंगी कब- तक तश्वीरें, संशय ही संशय है दिखता।
हाथ पकड़कर प्रश्न हमारा, भाव यही पन्नों पर लिखता।।
कहता उनसे अब तो बोलो, हम भी अपनी बात अड़े हैं।
मांग रहा हूँ जिनसे उत्तर, वो बिल्कुल ही मौन खड़े हैं।।
मांग रहा हूँ जिनसे उत्तर, वो बिल्कुल ही मौन खड़े हैं।
जाने कितने प्रश्न हमारे, यूँ ही उनके पास पड़े हैं।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)
27-10-2022