माँ
माँ !
तुझपे लिखना बहुत कठिन है
क्योंकि तुम शब्दो से परे हो
उस उचाई पर जिसका कोई अंत नही
उस गहराई पर जिसका कोई धरातल नही
आंखों से देखता हूँ तो तुम एओ नज़र आती हो
शरीर से भले ही तुम्हारा एक आधार है
पर तुम्हारा व्यक्तित्व असीम और निराकार है
माँ के अद्भुत रूप में कोई अवतार हो तुम
जिसके मातृत्व की कोई सीमा नही वो विस्तार हो तुम
परमात्मा जिसे हम पूजते है
वो भी तो तुम्हारे ही अंश है
ऐसे न जाने कितने वीर सपूतों के गढ़े तुमने वंश है
ये सदिया भी तुमने रची है
हर युग भी तुम्हारा है।
हे माँ !
तुम्हारे मातृ शक्ति को सत सत नमन हमारा है