माँ/रूप
प्रथम गुरू माँ वैध है, माँ देवी का रूप।
वात्शल्य करुणामयी, माँ का रूप अनूप। १
सारी दुनिया से लड़े, मात शक्ति स्वरूप।
जीवन पथ प्रदर्शक माँ, बुद्घि- ज्ञान का कूप।। २
जीवन पथ में जब कभी, हो कड़ी तेज धूप।
ठंढ़ी शीतल छांव दे,माँ का सुन्दर रूप।।३
माँ जीवन का सार हैं, माँ ही पालनहार।
माँ ममता का रूप है , माँ से प्यार दुलार ।। ४
पोथी सारे पढ़ लिया, मिला एक ही ज्ञान।
इस पूरे संसार में, माँ का रूप महान।। ५
स्वर्ग रूप जिसके चरण, वो है माँ का नाम।
माँ ही सारे तीर्थ हैं, माँ ही चारों धाम।।६
मंदिर-मंदिर ढूंढ़ते,हो कितने नादान।
मात-पिता के रूप में, घर में ही भगवान।। ७
-लक्ष्मी सिंह