माँ
ये ओस की बूँदे पत्तों पर,गिर-गिर कर जब ली अंगड़ाई।
पलकें जो खुली ख्वाबों के बाद,ऐ माँ बस तू ही याद आई।।
पेड़ों की डलिया सिसकी हैं,पंक्षी वीरानी पर रोये,
यूँ नहीं मयस्सर सबको सब,फलकों ने भी हैं कुछ खोये,
ये स्याह रात,खामोश जबाँ,बदरी जब लायी तन्हाई!
पलकें जो खुली•••••••••••।
क्या कहूँ तबीअत है उदास,गुमसुम दिल को समझाऊँ क्या,
निवाले तेरे हाथो से अब मिल नही सकते खाऊँ क्या,
हमदर्द हमसफर जितने थे की सबने मुझसे रुसवाई !
पलकें जो खुली•••••••••••।
अंजुमन में उसके खुशियों की, रहती थी जब जब बाढ़ आयी,
मैं माँ को ही मांगा बस,वो भी जन्नत बन थी आयी,
मै मिन्नत कर मर जाऊँ अब,दिखला अपनी अब परछाई!
पलकें जो खुली•••••••••••।