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22 Mar 2018 · 1 min read

“माँ”

बढता हू कदम-दर-कदम एक नई खोज से..
लिखना किया है शुरू मैने..चन्द रोज से..
भूला नही हू अदब.. अपने बड़ो का मै..
सीखा था ये हुनर जो माँ की गोद से..
*************************
निगाहे कहाँ हर कुछ बया करती है..
जो फरेब है वही ज़माने मे दिखा करती है..
और वो मुहब्बत दुनिया के किसी रिश्ते मे कहा..
जो मुहब्बत एक बेटे से उसकी माँ किया करती है..
*************************
दुआ है की कुबुल मेरी इबादत रखना..
और मेरे कौम के लोगो हिफाज़त रखना..
ख्वाहिश मेरी बस इतनी सी है मेरे खुदा..
की माँ का आँचल तु मेरे सिर पर सालामत रखना..

(जैद बलियावी)

1 Like · 347 Views
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