माँ
ना जन्नत की ख्बाईस है, तमन्ना ना खजानें की!
मुझे कोई सीखलादे , अदा माँ को मनानें की !!
जो माँ रूठे तो रब रूठे, सांस भी रूठ सी जातीं!
मुझे तो माँ की परवाह है, ना परवाह है जमानें की!!
मूल रचनाकार …..
डाँ. नरेश कुमार “सागर”
ना जन्नत की ख्बाईस है, तमन्ना ना खजानें की!
मुझे कोई सीखलादे , अदा माँ को मनानें की !!
जो माँ रूठे तो रब रूठे, सांस भी रूठ सी जातीं!
मुझे तो माँ की परवाह है, ना परवाह है जमानें की!!
मूल रचनाकार …..
डाँ. नरेश कुमार “सागर”