माँ
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माँ धरा है, माँ है अंबर, माँ सकल संसार है |
माँ खुदा भगवान माँ है, माँ हीं पालनहार है |1
पालती है गर्भ में जो, सींचती निज रक्त से,
सृष्टि के निर्माण में, माँ का बड़ा उपकार है|2
माँ कहाँ बर्दाश्त करती, अश्क निज संतान के,
माँ खुदा का रूप, ईश्वर का दिया उपहार है |3
पीठ पर बच्चा बँधा है, ईंट सर पर ढ़ो रही,
मुफलिसी में देखिए, यह माँ बड़ी लाचार है |4
गाल पर थप्पड़ लगाना, गोंद में पुचकारना,
हर घड़ी संतान हित में, माँ का अद्भुत प्यार है |5
कर दिया यौवन न्योछावर, नव सृजन की चाह में,
सृष्टि की निर्माणकर्ता, माँ जगत आधार है |6
ढूँढकर आओ बताओ, देख लो दुनिया जहाँ,
माँ के जैसा इस जगत, में किसका पावन प्यार है|
जो करे माँ का अनादर, बेतहाशा कष्ट दे,
सच कहूँ तो साथियों, वह आदमी बीमार है |7
लाख पीड़ा भूल जाती, एक ही मुस्कान पर,
है तमस यदि जिंदगी तो, माँ मेरी उजियार है |8
आंँच भी आने न देती, तू कभी संतान पर,
‘सूर्य’ करता बंदना, हे माँ तेरा आभार है |9
कौन अपना है जहाँ में, सोच कर देखो जरा,
स्वार्थ में लिपटा हुआ हर आदमी बाजार है |10
आजमाया है सभी ने, कारगर है ये दवा,
नफरतों के रोगियों का, प्रेम ही उपचार है |11
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464