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8 May 2022 · 1 min read

माँ

डा . अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

माँ

माँ है अनमोल
माँ है बे मोल
कदर कब जानी हमने

गुजरा वक्त याद
दिलाता – सन्तति
को है फिर ये लजाता

फिर ये कोई क्या
मुड़ के आता
लेकिन कोई
कहाँ है भूल पाता

माँ के ऋण
को कैसे चुकाता
सब ऋण भूले
एक न भूला
मय्या मय्या कह के बुलाता

सुख में दुख में
तु ही हिम्मत
पल पल लिखती
मेरी किस्मत

तेरे दूध से बढ्ता जाता
रक्त मांस अस्थी औ मज्जा
का था पिण्ड कभी जो कहाता

माँ है अनमोल
माँ है बे मोल
कदर कब जानी हमने

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 328 Views
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