माँ
डा . अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
माँ
माँ है अनमोल
माँ है बे मोल
कदर कब जानी हमने
गुजरा वक्त याद
दिलाता – सन्तति
को है फिर ये लजाता
फिर ये कोई क्या
मुड़ के आता
लेकिन कोई
कहाँ है भूल पाता
माँ के ऋण
को कैसे चुकाता
सब ऋण भूले
एक न भूला
मय्या मय्या कह के बुलाता
सुख में दुख में
तु ही हिम्मत
पल पल लिखती
मेरी किस्मत
तेरे दूध से बढ्ता जाता
रक्त मांस अस्थी औ मज्जा
का था पिण्ड कभी जो कहाता
माँ है अनमोल
माँ है बे मोल
कदर कब जानी हमने