माँ
गीतिका- माँ
आधार छन्द- दोहा
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जिनको अपने इष्ट पर, होता है विश्वास।
पूरी होती है सदा, उन भक्तों की आस।।1
माता से बढ़कर नहीं, होता कोई इष्ट,
माँ सुत को निज गर्भ में, रखती नौ-दस मास।।2
सृजन करे पालन करे, दे प्रारम्भिक ज्ञान,
ब्रह्मा विष्णु महेश का, है माता में वास।।3
पुत्र भले करता रहे, नित्य हृदय पर चोट,
तदपि देख सकती नहीं, माता उसे उदास।।4
सुख देती सन्तान को, लेती सब दुख झेल,
माता को होता नहीं कष्टों का आभास।।5
जर्जर तन पीड़ा सहे, नयन मलिन हो ज्योति,
माँ के अधरों पर तदपि, होता है मृदु हास।।6
देती है निज पुत्र को, माँ अंतिम सन्देश,
‘खुश रहना, मैं जा रही, अपने प्रियतम पास।।7
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