माँ
खेमकिरण सैनी
? माँ ?
‘माँ’ केवल एक शब्द नहीं
मेरे लिए पूरा संसार है।
माँ पास रहे या दूर रहे
मेरे जीवन की धार है।
उसके चेहरे की झुर्रियों में
छिपा एक पूरा इतिहास है।
बुढ़ापे से जर्जर काया में भी
वात्सल्य का वास है।
माँ की बुझती आँखों में
रहती मिलने की आस है
लुटाती रही जो उम्रभर हम पर
उस प्यार की अब उसे प्यास है।
असंख्य अनुभव सीखे स्वत: भी
पर माँ की शिक्षा कुछ खास है!
संतप्त न हो कभी हॄदय मात का
ईश्वर से यही अरदास है।
उसके सामने सब तमगे छोटे
माँ का प्यार अनमोल है।
स्वर्ग ही नहीं उसके कदमों में
माँ तो स्वयं खगोल है।
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