माँ
मानता हूँ मुकद्दर अच्छा नही मेरा,
लेकिन मेरी माँ का हाथ मेरे सिर पर है ।।
मैं दिखता हूँ दुनिया से अकेला लड़ते हुए,
जो बचाती है अंधेरों से मुझे, वो शक्स मेरे घर पर है ।।
मैं अनेको बार गिरता हू, लेकिन फिर से उठने का साहस है,
ये ताक़त जो मिलती हैं मुझे, वो दुआयें मेरी माँ के लब से है ।।
बेशक जमाने के लजीज़ पकवान खाए है मैने,
लेकिन मन तृप्त हो जिससे, वो लहसुन की चटनी और रोटी मेरे घर पर है ।।
कहते है कुछ लोग की कमजर्फ़ हूँ मैं,
मैं बेशक अच्छा हूँ,मेरी माँ का ये यकीं उनकी पाक नज़र से है ।।