माँ
माँँ आँँखों से ओझल होती।
आँँखे ढूँढ़ा करती रोती।
वो आँँखों में स्वप्न सँजोती।
हर दम नींद में जगती सोती।
वो मेरी आँँखों की ज्योती।
मैं उसकी आँँखों का मोती।
कितने आँँचल रोज भिगोती।
वो फिर भी न धीरज खोती।
कहता घर मैं हूँ इकलौती।
दादी की मैं पहली पोती।
माँँ की गोदी स्वर्ग मनौती।
क्या होता जो माँँ नाा होती।
नहीं जरा भी हुई कटौती।
गंगा बन कर भरी कठौती।
बड़ी हुई मैं हँसती रोती।
आँँख दिखाती जो हद खोती।
शब्द नहीं माँँ कैसी होती।
माँँ तो बस माँँ जैसी होती।
अाज हूँ जो, वो कभी न होती।
मेेरे संंग जो माँँ न होती।।