माँ
माँ
(1)
मां ने मुझे गर्भ में पाला ,
सहेजकर 9 माह संभाला ।
तभी मैं इस जग में आया ,
अपनी प्यारी माँ को पाया।
(2)
सींचा लहू की बूंदों से,
बहुत कष्ट माँ ने पाया।
अपनी सुंदरता त्याग कर,
सीने से दूध पिलाया।
(3)
काजल की टिका लगाकर,
बुरी नजर से बचाया।
ममता खूब लुटाकर,
आँचल में मुझे छिपाया।
(4)
खुद भूखी रहकर माँ ने,
खाना मुझे खिलाया।
उंगली पकड़कर उसने,
चलना मुझे सिखाया।
(5)
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर,
मन मे आत्मविश्वास जगाया।
मंजिल की राह बताकर,
स्वावलंबी बनना मुझे बताया।
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रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822