माँ
खुशियों से बच्चों की झोली भरती है
माँ मुझको तो एक परी सी लगती है
देख नहीं पाती है बच्चों को दुख में
उनके रोने पर माँ भी रो पड़ती है
अपने बच्चों पर जाती वारी वारी
बात बात पर नज़र उतारा करती है
सब कहते हैं मैं हूँ बिल्कुल माँ जैसी
मेरे अंदर ही मेरी माँ बसती है
खो जाती अक्सर माँ मेरी आँखों मे
मुझमें अपना बचपन ढूंढा करती है
बच्चों की बस खुशियाँ हैं उसको प्यारी
उनके पीछे माँ दीवानी रहती है
लगी ‘अर्चना’ पूजा में नित माँ रहती
बुरा न हो जाये कुछ इससे डरती है
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद