माँ
विषय – मां !
विधा- दुर्मिल सवैया !
दुर्मिल सवैया ।
विधान – ८ सगण, २४ वर्ण ।
ममता चित मे रहती नित मां , तुम हो अवलंब अलौकिक सी!
शिशुपाल बड़ी सुखदायक हो , अनुराग भरी जनु शावक सी !
विकसे चित नेह भरी गगरी , तनु बालक कष्ट निवारक सी !
अति भावुक भाव भरे उर मे , तजती सुख को नित साधक सी !!१
जगती प्रति आहट रात जगे, बस ध्यान रहे चित बालक मे !
मल त्याग करे तब साफ करे, दुनियाँ बसती शिशु नायक मे!
हँसती अँखियाँ छवि देख प्रभा, नव गीत उठे रस मादक मे !
जननी अवनी सम बोझिल है, प्रभुता निखरे जनु साधक मे !!२
सुख वैभव चाह करे सुत की, मिटती मन की अपनी दुनिया!
दिन रात चहे घर की नगरी , जन और बढे खिलती बगिया!
हँसते बढते घर के सपने, जब मां तजती अपनी खुशिया !
विपदा पल को नित झेल रही, जब द्वेष करे खुद की बछिया!! ३
छगन लाल गर्ग “विज्ञ”!